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मेरी लेखनी मेरी कविता
मैंने जमाना छोड़ दिया
(कविता)
कदम थक गए हैं
दूर निकलना छोड़ दिया,
पर ऐसा नहीं है कि
मैंने चलना छोड़ दिया ।।
फासले अक्सर रिश्तो़ मेें
दूरी बढ़ा देते हैं,
पर ऐसा नहीं कि
मैंने मिलना छोड़ दिया।।
मैंने चिरागों से रोशनी की है
अक्सर अपनी शाम पर ,
पर ऐसा नहीं कि मैंने
दिल जलाना छोड़ दिया ।।
मैं आज भी अकेला हूंँ
दुनिया की भीड़ में,
पर ऐसा नहीं कि
मैंने जमाना छोड़ दिया ।।
हरिशंकर सिंह सारांश
मैंने जमाना छोड़ दिया
(कविता)
कदम थक गए हैं
दूर निकलना छोड़ दिया,
पर ऐसा नहीं है कि
मैंने चलना छोड़ दिया ।।
फासले अक्सर रिश्तो़ मेें
दूरी बढ़ा देते हैं,
पर ऐसा नहीं कि
मैंने मिलना छोड़ दिया।।
मैंने चिरागों से रोशनी की है
अक्सर अपनी शाम पर ,
पर ऐसा नहीं कि मैंने
दिल जलाना छोड़ दिया ।।
मैं आज भी अकेला हूंँ
दुनिया की भीड़ में,
पर ऐसा नहीं कि
मैंने जमाना छोड़ दिया ।।
हरिशंकर सिंह सारांश
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