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मेरी लेखनी मेरी कविता
मैं जिंदगी हूंँ पगले
(कविता) जिंदगी विशेषांक
कल एक झलक जिंदगी को देखा
वह राहों पै मेरी गुनगुना रही थी।
फिर ढूंँढा उसे इधर उधर
वो आंँख मिचोली कर
मुस्करा रही थी।।
एक अर्से बाद आया
मेरे मन को करार ,
वो शहला के मुझको
सुला रही थी ।।
हम दोनों क्यों खफा हैं
एक दूसरे से,
मैं उसे और वो मुझे
समझा रही थी।।
मैंने पूछा क्यों इतना दर्द दिया
कमबख्त तूने ,
वो हंँसी और बोली,
मैं जिंदगी हूंँ पगले
तुझे जीना सिखा रही थी।।
हरिशंकर सिंह सारांश
मैं जिंदगी हूंँ पगले
(कविता) जिंदगी विशेषांक
कल एक झलक जिंदगी को देखा
वह राहों पै मेरी गुनगुना रही थी।
फिर ढूंँढा उसे इधर उधर
वो आंँख मिचोली कर
मुस्करा रही थी।।
एक अर्से बाद आया
मेरे मन को करार ,
वो शहला के मुझको
सुला रही थी ।।
हम दोनों क्यों खफा हैं
एक दूसरे से,
मैं उसे और वो मुझे
समझा रही थी।।
मैंने पूछा क्यों इतना दर्द दिया
कमबख्त तूने ,
वो हंँसी और बोली,
मैं जिंदगी हूंँ पगले
तुझे जीना सिखा रही थी।।
हरिशंकर सिंह सारांश
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