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मेरी लेखनी मेरी कविता
लोगों को तरसते देखा है
(कविता) समय चक्र
वह जो चलते थे शेर के मानिंद
उनको भी पांँव उठाने के लिए
सहारे को तरसते देखा है।
लोगों को तरसते देखा है।।
जिनकी आंँखों की चमक देख
सहम जाते थे लोग,
उन्हीं नजरों को मेघाेें की तरह
बरसते देखा है।
लोगों को तरसते देखा है ।।
जिन हाथों के इशारे से
टूट जाते थे पत्थर
उन्हीं हाथों को पत्तों की तरह
बिखरते देखा है ।
लोगों को तरसते देखा है ।।
जिनकी आवाज से कभी
बिजली के कड़कड़ाने&
लोगों को तरसते देखा है
(कविता) समय चक्र
वह जो चलते थे शेर के मानिंद
उनको भी पांँव उठाने के लिए
सहारे को तरसते देखा है।
लोगों को तरसते देखा है।।
जिनकी आंँखों की चमक देख
सहम जाते थे लोग,
उन्हीं नजरों को मेघाेें की तरह
बरसते देखा है।
लोगों को तरसते देखा है ।।
जिन हाथों के इशारे से
टूट जाते थे पत्थर
उन्हीं हाथों को पत्तों की तरह
बिखरते देखा है ।
लोगों को तरसते देखा है ।।
जिनकी आवाज से कभी
बिजली के कड़कड़ाने&
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