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मेरी लेखनी, मेरी कविता
खुद की पहचान को तरस जाते हैं लोग
(कविता)
खुद की पहचान को
तरस जाते हैं लोग।
मुसीबत में अक्सर
भटक जाते हैं लोग।।
हाले जिंदगी का
है किस्सा अजीब।
बड़ा ही निराला है
सबका नसीब ।।
जीवन के पथ पर
फिसल जाते हैं लोग।
खुद की पहचान को
तरस जाते हैं लोग ।।
आना-जाना सभी का
अटल सत्य है ।
फिर भी कागज की
किश्ती को सच मानकर
उसमें राही सफर
बन जाते हैं लोग ।
खुद की पहचान को
तरस जाते हैं लोग।।
हरिशंकर सिंह सारांश
खुद की पहचान को तरस जाते हैं लोग
(कविता)
खुद की पहचान को
तरस जाते हैं लोग।
मुसीबत में अक्सर
भटक जाते हैं लोग।।
हाले जिंदगी का
है किस्सा अजीब।
बड़ा ही निराला है
सबका नसीब ।।
जीवन के पथ पर
फिसल जाते हैं लोग।
खुद की पहचान को
तरस जाते हैं लोग ।।
आना-जाना सभी का
अटल सत्य है ।
फिर भी कागज की
किश्ती को सच मानकर
उसमें राही सफर
बन जाते हैं लोग ।
खुद की पहचान को
तरस जाते हैं लोग।।
हरिशंकर सिंह सारांश
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