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मेरी लेखनी ,मेरी कविता
"कर गए लोग बढ़ाई"
कविता( शहीद समर्पण)
आशीषेें दे गऐ
प्रशंँसा दया रूप
बरसाई ,
कर गए लोग बढ़ाई ।।
आजादी की खातिर सब ने
अपना सब कुछ खोया,
ऐसा लगा नींद से जागा
शेर सनातन सोया।।
देश धर्म और कपट की बातें
कभी न मन में लाऐ,
राष्ट्र धर्म का कार्य किया
और कभी नहीं अलसाऐ।।
परहित की खातिर इन सबने
अपनी शुध बिसराई,
कर गऐ लोग बढ़ाई ।
आशीषेँ दे गए,
प्रशंँसा दया रूप बरसाई।
कर गए लोग बढ़ाई।।
बलिदानी बेदी पर चढ़कर
सौंप दिया जीवन को।
भारत मांँ की बलिवेदी पर
सौंप दिया था खुद को।।
किया पुण्य का काम सभी ने
जरा देर ना लाई ,
कर गए लोग बढ़ाई
आशीषेेंं दे गए ।
प्रशंँसा दया रूप बरसाई,
कर गऐ लोग बढ़ाई।।
हरिशंकर सिंह सारांश
"कर गए लोग बढ़ाई"
कविता( शहीद समर्पण)
आशीषेें दे गऐ
प्रशंँसा दया रूप
बरसाई ,
कर गए लोग बढ़ाई ।।
आजादी की खातिर सब ने
अपना सब कुछ खोया,
ऐसा लगा नींद से जागा
शेर सनातन सोया।।
देश धर्म और कपट की बातें
कभी न मन में लाऐ,
राष्ट्र धर्म का कार्य किया
और कभी नहीं अलसाऐ।।
परहित की खातिर इन सबने
अपनी शुध बिसराई,
कर गऐ लोग बढ़ाई ।
आशीषेँ दे गए,
प्रशंँसा दया रूप बरसाई।
कर गए लोग बढ़ाई।।
बलिदानी बेदी पर चढ़कर
सौंप दिया जीवन को।
भारत मांँ की बलिवेदी पर
सौंप दिया था खुद को।।
किया पुण्य का काम सभी ने
जरा देर ना लाई ,
कर गए लोग बढ़ाई
आशीषेेंं दे गए ।
प्रशंँसा दया रूप बरसाई,
कर गऐ लोग बढ़ाई।।
हरिशंकर सिंह सारांश
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