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"कभी नजरे इनायत कराया करो" (कविता)

हरिशंकर सिंह सारांशहरिशंकर सिंह सारांश February 21, 2022
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मेरी लेखनी, मेरी कविता
"कभी नजरे इनायत कराया करो" 

 कभी सपनों में
 मेरे भी आया करो,
 आके नजरे इनायत
 कराया करो।

 धीमे धीमे कदम
शोखियों से भरे, 
आकेे नजरे इनायत
कराया करो।

 ताकती हैंं निगाहें
तेरे रूप को
 रब ढाला निराला
इस प्रतिरूप को,
 इसके दर्शन हमें
 भी कराया करो
 कभी सपनों में
मेरे भी आया करो।।

 रब ने फुर्सत से
 तुझको बनाया,
 तूने ममता का
 वरदान पाया,
 रूप की वो झलक ,
कभी आकर
 हमेें भी दिखाया करो,
 कभी सपने में
 मेरे भी आया करो।।
 आके नजरें इनायत
कराया करो ।।

तेरे होठों की लाली
भी भरपूर है,
 तेरे चेहरे पै छाया
 अजब नूर है,
 नैना तेरे ,प्रेम रस से भरे
 कभी आकर हमें भी
 निहारा करो ।

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