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मेरी लेखनी मेरी कविता
जिंदगी को बेहतर समझने लगा हूंँ
(कविता)
ख्वाबों से अपने जगने लगा हूंँ
जिंदगी को बेहतर समझने लगा हूंँ।
उड़ता था शायद कभी ऊंचे गगन में
जमीं पर आज पैर रखने लगा हूंँ।
लफ्जों की मुझको जरूरत नहीं है
चेहरों को अब मैं पढ़ने लगा हूंँ।
दुनियाँ की बदलती तस्वीर देख
शायद मैं कुछ कुछ बदलने लगा हूंँ।
नफरत के जहर को मिटाना ही होगा
इरादा ये लेकर चलने लगा हूंँ।
परवाह नहीं कोई साथ आए मेरे
पथ पर अकेला चलने लगा हूंँ।
हरिशंकर सिंह सारांश
जिंदगी को बेहतर समझने लगा हूंँ
(कविता)
ख्वाबों से अपने जगने लगा हूंँ
जिंदगी को बेहतर समझने लगा हूंँ।
उड़ता था शायद कभी ऊंचे गगन में
जमीं पर आज पैर रखने लगा हूंँ।
लफ्जों की मुझको जरूरत नहीं है
चेहरों को अब मैं पढ़ने लगा हूंँ।
दुनियाँ की बदलती तस्वीर देख
शायद मैं कुछ कुछ बदलने लगा हूंँ।
नफरत के जहर को मिटाना ही होगा
इरादा ये लेकर चलने लगा हूंँ।
परवाह नहीं कोई साथ आए मेरे
पथ पर अकेला चलने लगा हूंँ।
हरिशंकर सिंह सारांश
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