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मेरी लेखनी मेरी कविता
झूठ की पहचान बहुत हैं
(कविता)
खुशियां कम
अरमान बहुत हैं
जिन्हें भी देखो
परेशान बहुत हैं।।
दूर से देखा तो
दिखा रेत का घर,
पास से देखा तो
इसकी शान बहुत हैं।।
कहते हैं सच का
कोई सानी नहीं,
मगर झूठ की
पहचान बहुत हैं।।
मुश्किल से मिलता है
दिल का धनी आदमी
कहने को शहर में
इंसान बहुत हैं।।
झूठ की पहचान बहुत हैं ।।
हरिशंकर सिंह सारांश
झूठ की पहचान बहुत हैं
(कविता)
खुशियां कम
अरमान बहुत हैं
जिन्हें भी देखो
परेशान बहुत हैं।।
दूर से देखा तो
दिखा रेत का घर,
पास से देखा तो
इसकी शान बहुत हैं।।
कहते हैं सच का
कोई सानी नहीं,
मगर झूठ की
पहचान बहुत हैं।।
मुश्किल से मिलता है
दिल का धनी आदमी
कहने को शहर में
इंसान बहुत हैं।।
झूठ की पहचान बहुत हैं ।।
हरिशंकर सिंह सारांश
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