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मेरी लेखनी मेरी कविता
झूठ की पहचान बहुत हैं
(कविता)
खुशियां कम
अरमान बहुत हैं
जिन्हें भी देखो
परेशान बहुत हैं।।
दूर से देखा तो
दिखा रेत का घर,
पास से देखा तो
इसकी शान बहुत हैं।।
कहत
झूठ की पहचान बहुत हैं
(कविता)
खुशियां कम
अरमान बहुत हैं
जिन्हें भी देखो
परेशान बहुत हैं।।
दूर से देखा तो
दिखा रेत का घर,
पास से देखा तो
इसकी शान बहुत हैं।।
कहत
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