झूठ की पहचान बहुत हैं ( कविता)'s image
Poetry1 min read

झूठ की पहचान बहुत हैं ( कविता)

हरिशंकर सिंह सारांशहरिशंकर सिंह सारांश March 26, 2023
Share0 Bookmarks 50282 Reads1 Likes
मेरी लेखनी मेरी कविता
 झूठ की पहचान बहुत हैं
(कविता)

खुशियां कम
 अरमान बहुत हैं 
जिन्हें भी देखो
 परेशान बहुत हैं।।

दूर से देखा तो
 दिखा रेत का घर,
पास से देखा तो
 इसकी शान बहुत हैं।।

कहत

No posts

Comments

No posts

No posts

No posts

No posts