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मेरी लेखनी मेरी कविता 
शब्द वेदना 

अपनी बेबसी पर हैरान हूंँ। 
हांँ मैं किसान हूंँ। 
पाग पग पर उजड़ा हूँँ,  लुटा हूंँ ,।।
 
दुनिया की भूख मिटाने को
 फिर भी तन कर खड़ा हूंँ।
 दुविधा मैं हूंँ, परेशान हूंँ।
हांँ मैं किसान हूंँ।।

किससे करूंँ शिकायत
 अरदास  किससे करूंँ।
गफलत में कैसे जियूंँ, 
लुट गई है मेहनत
 मैं हलकान  हूंँ। 
हांँ मैं किसान हूँ। 

गिरता हूंँ संभलता  हूंँ
 यही मेरी कहानी है
 कभी खुशियों का समंदर है
 कभी आंखों में पानी है।
किस्मत ने मुझे मारा है
फिर भी महान हूंँ। ।
हांँ मैं किसान हूंँ। ।

सरकार तमन्ना है इतनी  है
कुदरत ने मुझको मारा है।
जीवन की विकट स्थिति में 
बस मुझको तेरा सहारा है ।।
कुछ करो सहारा दो मुझको 
मैं हर प्राणी का प्रान हूंँ। ।

हांँ मैं किसान हूंँ। 

एक मार्मिक वेदना 

हरिशंकर सिंह सारांश  

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