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मेरी लेखनी मेरी कविता
हांँ मैं एक औरत हूंँ
(कविता) महिला दिवस विशेषांक ।
दिल में बस जाए
वह मोहब्बत हूंँ
कभी बहन कभी
ममता की मूरत हूंँ
हांँ मैं एक औरत हूंँ।
मेरे आंँचल से बने
चांँद सितारे
मैं अपने आप में
रब की मूरत हूंँ
हांँ मैं एक औरत हूंँ।।
हर दर्द छुपाती सीने में
जुबां पर है ना आने देती हूंँ।
जीवन की रचना करती हूंँ।
जीवन की एक इबारत हूंँ
हांँ मैं एक औरत हूंँ ।।
मेरे होने से ही यह कयानात है
दुनिया की हर विसात है,
मैं जिंदगी की एक
खूबसूरत हकीकत हूंँ।
हांँ मैं एक औरत हूंँ।।
हर रूप रंग में ढलती हूंँ
मैं हर रिश्ते की ताकत हूंँ
जीवन में समरस लाती हूंँ
सबकी तकदीर बदलती हूंँ
हां मैं एक औरत हूंँ।
जीवन का संचय करती हूंँ
जीवन बहुरंगी करती हूंँ
सुनसान पड़ी जीवन बगिया में
नूतन अंकुर रचती हूंँ
मेरे ही कारण
यह जिंदगी खूबसूरत है
हां मैं एक औरत हूंँ ।
हरिशंकर सिंह सारांश
हांँ मैं एक औरत हूंँ
(कविता) महिला दिवस विशेषांक ।
दिल में बस जाए
वह मोहब्बत हूंँ
कभी बहन कभी
ममता की मूरत हूंँ
हांँ मैं एक औरत हूंँ।
मेरे आंँचल से बने
चांँद सितारे
मैं अपने आप में
रब की मूरत हूंँ
हांँ मैं एक औरत हूंँ।।
हर दर्द छुपाती सीने में
जुबां पर है ना आने देती हूंँ।
जीवन की रचना करती हूंँ।
जीवन की एक इबारत हूंँ
हांँ मैं एक औरत हूंँ ।।
मेरे होने से ही यह कयानात है
दुनिया की हर विसात है,
मैं जिंदगी की एक
खूबसूरत हकीकत हूंँ।
हांँ मैं एक औरत हूंँ।।
हर रूप रंग में ढलती हूंँ
मैं हर रिश्ते की ताकत हूंँ
जीवन में समरस लाती हूंँ
सबकी तकदीर बदलती हूंँ
हां मैं एक औरत हूंँ।
जीवन का संचय करती हूंँ
जीवन बहुरंगी करती हूंँ
सुनसान पड़ी जीवन बगिया में
नूतन अंकुर रचती हूंँ
मेरे ही कारण
यह जिंदगी खूबसूरत है
हां मैं एक औरत हूंँ ।
हरिशंकर सिंह सारांश
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