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मेरी लेखनी मेरी कविता
दूर निकलना छोड़ दिया
(कविता)
जीवन की इस बेताबी में
मैंने दूर निकलना छोड़ दिया।।
पर ऐसा नहीं है कि
मैंने चलना छोड़ दिया।।
फासले रिश्तो में
दूरियां बढ़ा देते हैं
पर ऐसा नहीं है कि
अब मैंने अपनों से
मिलना छोड़ दिया।।
मैंने दूर निकलना छोड़ दिया।।
महसूस अकेला करता हूंँ
अपनों की भीड़ में
पर ऐसा नहीं है कि
मैंने अपनापन ही छोड़ दिया।
मैंने दूर निकल ना कर दिया।।
याद सभी को करता हूंँ
परवाह अभी की करता हूंँ
जीवन के पल पल को मैंने
अपनों पै लुटाना छोड़ दिया
मैंने दूर निकलना छोड़ दिया।।
हरिशंकर सिंह सारांश
दूर निकलना छोड़ दिया
(कविता)
जीवन की इस बेताबी में
मैंने दूर निकलना छोड़ दिया।।
पर ऐसा नहीं है कि
मैंने चलना छोड़ दिया।।
फासले रिश्तो में
दूरियां बढ़ा देते हैं
पर ऐसा नहीं है कि
अब मैंने अपनों से
मिलना छोड़ दिया।।
मैंने दूर निकलना छोड़ दिया।।
महसूस अकेला करता हूंँ
अपनों की भीड़ में
पर ऐसा नहीं है कि
मैंने अपनापन ही छोड़ दिया।
मैंने दूर निकल ना कर दिया।।
याद सभी को करता हूंँ
परवाह अभी की करता हूंँ
जीवन के पल पल को मैंने
अपनों पै लुटाना छोड़ दिया
मैंने दूर निकलना छोड़ दिया।।
हरिशंकर सिंह सारांश
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