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मेरी लेखनी ,मेरी कविता
"धरती पर हर नवचार अमिट" (कविता)
एक आह्वान
यह धरा अमिट,
यह ज्ञान अमिट।
जीवटता का
संसार अमिट।
उस निराकार का
रूप अमिट,
धरती पर हर
नवचार अमिट।
यह धरा
अलंकृत हो जाए
जब ज्ञान रूप
अंँकुर फूटे।
आशा का दीपक उज्जवल हो,
मानव, मानव से
ना रूठे।
जीवन की माला
अमिट बने ,
कोई भी ना
मोती टूटे ।
तू काम धरा पर
ऐसा कर
हो जाए तेरा
नाम अमिट।
यह ज्ञान अमिट,
है ,कला अमिट
जीवटता का
संसार अमिट।
हरिशंकर सिंह सारांश
"धरती पर हर नवचार अमिट" (कविता)
एक आह्वान
यह धरा अमिट,
यह ज्ञान अमिट।
जीवटता का
संसार अमिट।
उस निराकार का
रूप अमिट,
धरती पर हर
नवचार अमिट।
यह धरा
अलंकृत हो जाए
जब ज्ञान रूप
अंँकुर फूटे।
आशा का दीपक उज्जवल हो,
मानव, मानव से
ना रूठे।
जीवन की माला
अमिट बने ,
कोई भी ना
मोती टूटे ।
तू काम धरा पर
ऐसा कर
हो जाए तेरा
नाम अमिट।
यह ज्ञान अमिट,
है ,कला अमिट
जीवटता का
संसार अमिट।
हरिशंकर सिंह सारांश
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