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मेरी लेखनी मेरी कविता
देखी है सारी शोखियांँ
उनके शवाब में ।।
सारे जवाब मिल गए
उस लाजवाब में ।।
देखे चमन में फूल
अलग-अलग रंग के।
सब आके जैसे मिल गए
इक गुलाब में ।।
कुदरत खुदा की देखिए
क्या-क्या बना दिया।
सारे हिसाब मिल गये
उस बेहिसाब में ।।
'निर्झर' वो रूप अनूप है
और प्यार बेशुमार ,
फिर क्यों न मस्त हो कोई
उसकी शराब में ।।
देखी है सारी सोखियांँ
उनके सवाब मेें।।
हरिशंकर सिंह सारांश
देखी है सारी शोखियांँ
उनके शवाब में ।।
सारे जवाब मिल गए
उस लाजवाब में ।।
देखे चमन में फूल
अलग-अलग रंग के।
सब आके जैसे मिल गए
इक गुलाब में ।।
कुदरत खुदा की देखिए
क्या-क्या बना दिया।
सारे हिसाब मिल गये
उस बेहिसाब में ।।
'निर्झर' वो रूप अनूप है
और प्यार बेशुमार ,
फिर क्यों न मस्त हो कोई
उसकी शराब में ।।
देखी है सारी सोखियांँ
उनके सवाब मेें।।
हरिशंकर सिंह सारांश
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