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मेरी लेखनी मेरी कविता
बिखरे हुए सपनों ने रुला दिया मुझको
(कविता) बेटी विशेषांक
धुआंँ बनाकर फिजाँ में
उड़ा दिया मुझको ।
मैं जल रही थी किसी ने
बुझा दिया मुझको।।
तरक्कीयों का फसाना
सुना दिया मुझको।
अभी हंँसी भी न थी
कि रुला दिया मुझको।
खड़ी हूंँ आज भी
रोटी के चार हरफ लिए।
सवाल यह है कि किताबों ने
क्या दिया मुझको ।।
सफेद रंग की चादर
लपेट कर मुझ पर,
फासले शहर में किसने
सजा दिया मुझको ।।
मैं एक फलक बुलंदी को
छूने निकली थी।
हवा ने थाम कर जमींं पर
गिरा दिया मुझको।।
जिसे रहा है मेरी जिंदगी पर
हक वर्षों,
गजब तो यह है कि उसी ने
भुला दिया मुझको।।
न जाने कौन सा जज्बा था
जिसने अपनी जात का
दुश्मन बना दिया मुझको ।।
हरिशंकर सिंह सारांश
बिखरे हुए सपनों ने रुला दिया मुझको
(कविता) बेटी विशेषांक
धुआंँ बनाकर फिजाँ में
उड़ा दिया मुझको ।
मैं जल रही थी किसी ने
बुझा दिया मुझको।।
तरक्कीयों का फसाना
सुना दिया मुझको।
अभी हंँसी भी न थी
कि रुला दिया मुझको।
खड़ी हूंँ आज भी
रोटी के चार हरफ लिए।
सवाल यह है कि किताबों ने
क्या दिया मुझको ।।
सफेद रंग की चादर
लपेट कर मुझ पर,
फासले शहर में किसने
सजा दिया मुझको ।।
मैं एक फलक बुलंदी को
छूने निकली थी।
हवा ने थाम कर जमींं पर
गिरा दिया मुझको।।
जिसे रहा है मेरी जिंदगी पर
हक वर्षों,
गजब तो यह है कि उसी ने
भुला दिया मुझको।।
न जाने कौन सा जज्बा था
जिसने अपनी जात का
दुश्मन बना दिया मुझको ।।
हरिशंकर सिंह सारांश
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