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मेरी लेखनी मेरी कविता
बिखरे हुए सपनों ने रुला दिया मुझको
(कविता) बेटी विशेषांक
धुआंँ बनाकर फिजाँ में
उड़ा दिया मुझको ।
मैं जल रही थी किसी ने
बुझा दिया मुझको।।
तरक्कीयों का फसाना
सुना दिया मुझको।
अभी हंँसी भी न थी
कि रुला दिया मुझको।
खड़ी हूंँ आज भी
रोटी के चार हरफ लिए।
सवाल यह है कि किताबों ने
क्या दिया मुझको ।।
सफेद रंग की चादर
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बिखरे हुए सपनों ने रुला दिया मुझको
(कविता) बेटी विशेषांक
धुआंँ बनाकर फिजाँ में
उड़ा दिया मुझको ।
मैं जल रही थी किसी ने
बुझा दिया मुझको।।
तरक्कीयों का फसाना
सुना दिया मुझको।
अभी हंँसी भी न थी
कि रुला दिया मुझको।
खड़ी हूंँ आज भी
रोटी के चार हरफ लिए।
सवाल यह है कि किताबों ने
क्या दिया मुझको ।।
सफेद रंग की चादर
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