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मेरी लेखनी मेरी कविता
बड़े-बड़े ईमान बिक गए
(कविता) मानव फितरत
ज्ञान बिकेे ,ध्यान बिक गए
कलम बिकी ,सम्मान बिक गए ।
छोटी-छोटी सुविधाओं पर
बड़े-बड़े ईमान बिक गए।।
सोच समझ कर मुंँह से बोलो
दीवारों के कान बिक गए ।।
उनसे पूछ जिंदगी क्या ह
बड़े-बड़े ईमान बिक गए
(कविता) मानव फितरत
ज्ञान बिकेे ,ध्यान बिक गए
कलम बिकी ,सम्मान बिक गए ।
छोटी-छोटी सुविधाओं पर
बड़े-बड़े ईमान बिक गए।।
सोच समझ कर मुंँह से बोलो
दीवारों के कान बिक गए ।।
उनसे पूछ जिंदगी क्या ह
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