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मेरी लेखनी मेरी कविता
बड़े-बड़े ईमान बिक गए
(कविता) मानव फितरत
ज्ञान बिकेे ,ध्यान बिक गए
कलम बिकी ,सम्मान बिक गए ।
छोटी-छोटी सुविधाओं पर
बड़े-बड़े ईमान बिक गए।।
सोच समझ कर मुंँह से बोलो
दीवारों के कान बिक गए ।।
उनसे पूछ जिंदगी क्या है?
जिनके सब अरमान बिक गए।।
नग्न रह गईं जीवित लाशें
मुर्दों के परिधान बिक गए।।
चोरों को मत दोष दीजिए
घर के ही दरबान बिक गए ।।
पशुओं की कीमत लगती है
बिना मूल्य इंसान बिक गए।।
बड़े-बड़े ईमान बिक गए ।।
हरिशंकर सिंह सारांश
बड़े-बड़े ईमान बिक गए
(कविता) मानव फितरत
ज्ञान बिकेे ,ध्यान बिक गए
कलम बिकी ,सम्मान बिक गए ।
छोटी-छोटी सुविधाओं पर
बड़े-बड़े ईमान बिक गए।।
सोच समझ कर मुंँह से बोलो
दीवारों के कान बिक गए ।।
उनसे पूछ जिंदगी क्या है?
जिनके सब अरमान बिक गए।।
नग्न रह गईं जीवित लाशें
मुर्दों के परिधान बिक गए।।
चोरों को मत दोष दीजिए
घर के ही दरबान बिक गए ।।
पशुओं की कीमत लगती है
बिना मूल्य इंसान बिक गए।।
बड़े-बड़े ईमान बिक गए ।।
हरिशंकर सिंह सारांश
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