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मेरी लेखनी,मेरी कविता
अनजान पथ के राही
(कविता)
ऐ पथिक अनजान पथ के,
दूर तू जाता कहांँ?
पहनकर वीरों का बाना ,
कर सजाकर अस्त्र नाना
एक लंबित राह पर
चलकर तू जाता है कहांँ?
ऐ पथिक अनजान पथ के
दूर तू जाता कहांँ?
हो खड़ा रुक कर बता ,
क्या हुई तुझसे खता ?
छोड़कर अपनों को पीछे
बृहद विशाल गगन के नीचे ।
छोड़कर सारा जहाँ।
ऐ पथिक अनजान पथ के
दूर तू जाता कहांँ?
पहन वर्दी शान की ,
राष्ट्र के सम्मान की ।
तू रास्ते पर जा रहा ,
जीवन के सारे जोश को
पदचाप से दर्शा रहा।।
पर दर्प मानवता का
अब जाकर छुपा है कहांँ?
ऐ पथिक अनजान पथ के
दूर तू जाता कहांँ?
,
अनजान पथ के राही
(कविता)
ऐ पथिक अनजान पथ के,
दूर तू जाता कहांँ?
पहनकर वीरों का बाना ,
कर सजाकर अस्त्र नाना
एक लंबित राह पर
चलकर तू जाता है कहांँ?
ऐ पथिक अनजान पथ के
दूर तू जाता कहांँ?
हो खड़ा रुक कर बता ,
क्या हुई तुझसे खता ?
छोड़कर अपनों को पीछे
बृहद विशाल गगन के नीचे ।
छोड़कर सारा जहाँ।
ऐ पथिक अनजान पथ के
दूर तू जाता कहांँ?
पहन वर्दी शान की ,
राष्ट्र के सम्मान की ।
तू रास्ते पर जा रहा ,
जीवन के सारे जोश को
पदचाप से दर्शा रहा।।
पर दर्प मानवता का
अब जाकर छुपा है कहांँ?
ऐ पथिक अनजान पथ के
दूर तू जाता कहांँ?
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