अनजान पथ के राही (कविता)'s image
Poetry1 min read

अनजान पथ के राही (कविता)

हरिशंकर सिंह 'सारांश 'हरिशंकर सिंह 'सारांश ' March 15, 2023
Share0 Bookmarks 98 Reads1 Likes
मेरी लेखनी,मेरी कविता 
 अनजान पथ के राही 
(कविता)

ऐ पथिक अनजान पथ के,
दूर तू जाता कहांँ?

पहनकर वीरों का बाना ,
कर सजाकर अस्त्र नाना 
एक लंबित राह पर 
चलकर तू जाता है कहांँ?
ऐ पथिक अनजान पथ के 
 दूर तू जाता कहांँ? 

हो खड़ा रुक कर बता ,
क्या हुई तुझसे खता ?
छोड़कर अपनों को पीछे 
बृहद विशाल गगन के नीचे ।
छोड़कर सारा जहाँ।

 ऐ पथिक अनजान पथ के
 दूर तू जाता कहांँ?

पहन वर्दी शान की ,
राष्ट्र के सम्मान की ।
तू रास्ते पर जा रहा ,
जीवन के सारे जोश को
पदचाप से दर्शा रहा।।
पर दर्प मानवता का
 अब जाकर छुपा है कहांँ?

ऐ पथिक अनजान पथ के
 दूर तू जाता कहांँ?   

 





,
  

No posts

Comments

No posts

No posts

No posts

No posts