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कदम थक गए हैं
राहों पर चलते हुए,
जो तुम तक जाती हैं
शायद तुम नसीब में नहीं
क़रीब जब भी आता हूं,
राहें खत्म हो जाती हैं
२०/११/२०२१
- हरीश
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कदम थक गए हैं
राहों पर चलते हुए,
जो तुम तक जाती हैं
शायद तुम नसीब में नहीं
क़रीब जब भी आता हूं,
राहें खत्म हो जाती हैं
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