
Share0 Bookmarks 26 Reads1 Likes
ज़िंदगी की इस पटरी पर,
वक्त रेल सा गुज़र रहा है...
मैं ख्वाहिशें लिए वही खड़ा हूं,
फ़िर इक आज़ गुज़र रहा है...
हैरान हूं पतझड़ के इस दौर से,
ज़िंदगी का हर बसंत गुज़र रहा है
कल बीता, सुनहरे कल के इन्तज़ार में,
फ़िर इक आज़ गुज़र रहा है...
- हरीश
(२३/०३/२०२३)
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments