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सुनो..,
ये दुनिया है साहिब,
ये दुनिया है साहिब,
सबके अपने रंग है सबकी अपनी पहचान,
कोई मतलब से है सँग, तो कोई यूँही है अनजान!
सुनो..,
हाँ में हाँ मिलाते रहो तो हर रिश्ते निभ जायेंगे,
एक दफा ना कहने की कोशिश तो करो,
सबके चेहरों से नकाब उतर जायेंगे!
सुनो..,
अक्लमंद तो सब है यहाँ, लेकिन फ़िक्रमन्द कोई नहीं,
कहने क़ो तो साथ सब है यहाँ, लेकिन मुश्किल में साथ कोई नहीं,
सुनो..,
ये दुनिया है साहिब,
यहाँ चेहरे कम नक़ाब ज्यादा है,
यहाँ अपने कम पराये ज्यादा है,
यहाँ भरोसा कम फरेब ज्यादा है,
हमसफ़र के साथ भी सफ़र आधा है,
क्यंकि यहाँ अच्छे लोग कम,बुरे लोग ज्यादा है!
सुनो..,
ये दुनिया है साहिब,
सबके अपने रंग है सबकी अपनी पहचान,
कोई मतलब से है सँग, तो कोई यूँही है अनजान!
स्वरचित - हरीश विद्रोही
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