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जब धृतराष्ट्र की महासभा में,

द्युत क्रीड़ा आरम्भ हुई 

प्रलोभन की मोहमाया में,

युधिष्ठिर भी एक क्षण क़ो निष्ठुर हुआ,

परम परतापी युधिष्ठिर के कृत्य से,

पार्थ, भीम, नकुल, सहदेव,

पांचो भाई महासभा में,

लज्जित और नतशीष हुए,

षड़यंत्र में फंसकर ज्येष्ठ पाण्डु,

युधिष्ठिर क्षण भर बुद्धिहीन हुए,

युधिष्ठिर,पांचाली क़ो लगा दांव पर,

धर्म कर्म सब भूल गए,

पांचो भाई महासभा में

फिर लज्जित और नतशीष हुए,

प्रतिशोध की ज्वाला में जलकर 

दुर्योधन ने ये पाप किया 

सुनो दुशाशन अनुज मेरे,

दुर्योधन ने आदेश दिया 

केश पकड़ पांचाली के तुम 

भरी सभा में वस्त्रहीन करो,

निर्वस्त्र करने लगा दुशाशन चेहरे पर मुस्कान लिए,

पांचाली आओ जंघा पर बैठो, दुर्योधन ने आदेश दिया 

फफक फ़फ़क़ कर विनती कर पांचाली ने,

महामहिम, गुरु द्रोण और धृतराष्ट्र से मदद गुहार लगाई,

मुँह फेर कर विराज गए सभी,

महाप्रतापी पुतले बन सब मौन हुए,

पांचो भाई उस महासभा में

फिर लज्जित और नतशीष हुए,

थक हारकर जब पांचाली ने,

अपनी रक्षा हेतु,

केशव क़ो मन से पुकार लिया 

हे केशव तुम चीर बचा लो,

तुम ही सखा मेरे हो,

इस सभा के महाप्रतापी,

सब निर्लज्ज गूंगे और बहरे है,

अब तुम ही मेरा चीर बचा लो,

तुम ही सखा मेरे हो,

हुए प्रकट जब केशव तो ,

कुछ ऐसा चमत्कार हुआ,

अपनी माया से केशव ने

पांचाली क़ो ऐसा वस्त्र सार दिया 

पांचाली क़ो निर्वस्त्र करते करते,

दुशाशन थक कर हार गया,

लेकिन केशव की माया से,

तनिक नहीं पांचाली का वस्त्र चीर हुआ 

अश्रु पोछकर आँखों से पांचाली ने,

चेहरे पर मुस्कान धरी,

हाथ जोड़कर पांचाली ने,

केशव क़ो प्रणाम किया

धन्यवाद हे केशव सखा मेरे,
तुम ही सबके रक्षक हो

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