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बस बहुत हो गया..,
अब थक सा गया हूँ मैं,
क्यूंकि...?
ना घर में सुकून है,
ना बाहर सुकून है,
ना आँख में नींद है,
ना मन शांत है,
ना अँधेरे से डर है,
ना उजालों की दरकार है,
ना खुद से कोई उम्मीद है,
ना अपनों से कोई आश है,
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