
केशव ने कहा!
हे अंगराज कर्ण !
एक समय था जब पृथ्वीर के पुत्र कार्तवीय अर्जुन नाम के एक क्षत्रिय राजा ने महर्षि जमदग्नि की हत्या कर दी महर्षि के पुत्र ने क्या किया जानते है आप,
उन्होंने अपनी पीड़ा में भी विचार किया कि क्यों उनके पिता महर्षि जमदग्नि की हत्या की गई
कहाँ फैला था अधर्म?
उन्होंने अपनी पीड़ा का विस्मरण कर दिया
समग्र समाज की पीड़ा को अपना लिया
और अधर्मी क्षत्रियो का नाश कर
समग्र आर्यावर्त्त को शुद्ध करने को अपना जीवन मंत्र बना लिया..,
वो केवल अपना प्रतिशोध लेकर बैठते तो आज भगवान परशुराम नहीं कहलाते
हे कर्ण!तुम्हें जो दुःख एवं अपमान मिले वो वास्तविक थे,
किन्तु आप उन्हें अवसर बना लेते तो समाज का उद्धार होता और आपका कल्याण होता
तुम जैसे शक्तिमान मनुष्य का आधार शोषित और पीड़ितों लोगों को मिल जाता तो,कितने लोगों के जीवन सुख से भर जाते
आपके पास सामर्थ्य भी था, सम्भावना भी था,और उस पीड़ा का अनुभव भी था,किंतु आपने अपना जीवन उन्हें समर्पित नहीं किया आपने अपना जीवन समर्पित कर दिया दुर्योधन को जिसके पक्ष में केवल अधर्म था और कुछ नहीं..!!
#हरीश विद्रोही
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