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हाँ मैं लड़ा बहुत हूँ...
कभी खुद से, तो कभी गैरों से,
कभी खुद की ही खुद्दारी से, या जीवन की लाचारी से,
हाँ मैं लड़ा बहुत हूँ!
हाँ मैं लड़ा बहुत हूँ...
कभी अंतर्मन की लहरों से,
कभी ह्रदय के अंधियारों से,
कभी अंतस में चीखती पुकारो से,
नयनों से बहती जल धारो से,
हाँ मैं लड़ा बहुत हूँ!
हाँ मैं लड़ा बहुत हूँ....
कभी जून की तपती गर्मी से,
कभी सर्दी की सर्द हवाओ से,
कभी बेमौसम अंधकारों से,
कभी बारिश की फुहारो से..,
हाँ मैं लड़ा बहुत हूँ!
हाँ मैं लड़ा बहुत हूँ...
कभी अपने अधूरे सपनों से,
जो कभी अपने ना हो पाए उन अपनों से,
कभी झूठ से, तो कभी हकीकत से..
हाँ मैं लड़ा बहुत हूँ!
हाँ मैं लड़ा बहुत हूँ...
कभी यारों से, कभी गद्दारों से,
कभी भीतर की शंकाओ से ,ह्रदय के अंधियारों से,
और मन में उठते विचारों से..
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