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बदलते इस साल में,
जहाँ घरो में कैलंडर बदले,
उसी तरह मेरी ज़िन्दगी में भी,
बहुत कुछ बदला!
कहीं मौसम बदले तो,
कहीं मौसम की रंगिनिया बदली,
मेरे कुछ सपने टूटे..,
तो कहीं मेरे अपने रूठें!
ज़िन्दगी के इस सफऱ में,
मेरे हाथों से हमराही के हाथ छूटे,
तो कहीं मंजिल के रास्ते छूटे,
किसी से किये हुए वादे टूटे तो,
तो कहीं मेरी उम्मीदों के पुलिंदे टूटे!
इस बदलते साल में जहाँ,
कहीं रंग बिरंगी रौशनीया बिखरी,
तो कहीं मेरी जिंदगी में गमों के साये पसरे,
कहीं मैं बिखरा, कहीं मेरी कहानी बिखरी!
बदलते इस साल में कैलंडर की तरह,
मेरी ज़िन्दगी में भी बहुत कुछ बदला!
#स्वरचित:-हरीश विद्रोही
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