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एक दुल्हन है जिसकी सेज पर सजे हुए पुष्प हैं,
जिसके अधरों पर लालिमा है उस होने वाले चुम्बन की,
जिसके नयन व्रीड से शुष्क हैं !
वो परिमल, वो सौंदर्य, वो लाली, वो लहंगा, वो चांद जो चढ़ा हुआ गिगनारों में,
वो जो महकता उसके इत्र में, नयनों के कज्जल में, साज - श्रृंगारों में,
जिसकी प्रतिमा स्थापित है हृदय में मन में,
क्या वो सदा साथ देगा उसका जीवन में ?
क्या प्रियतम के लिए वह नित सिंदूर सजा पाएगी,
क्या वो सदा चूड़ियां पहनेगी, काजल लगाएगी ?
क्या वो सीमा पर खड़ा हुआ भी,
उसे याद रखता होगा ?
क्या उसे भी स्व में कुछ कम, कुछ अपूर्ण लगता होगा ?
क्या उसे मन में न आएगा उस अजन्मी नन्ही जान को बाहों में भरना,
क्या उसे याद न आएगा उसका रोना, लाते मारना, कुलांचे भरना ?
वह इन्ही विचारों में थी मग्न, भूतार्थ से कुछ बहुत दूर,
ऐसे में ही दर्पण के सामने से धरा पर गिरा उसका सिंदूर,
इस अपशकुन से वह नववधू हुई कुछ भीत, कुछ अधीर,
इतने में आंगन में आया एक तिरंगे से ढका शरीर,
पुष्प मुरझाए, हवाएं निश्चल हो मौन है,
इस वितान के नीचे यह लेता हुआ कौन है ?
कौन कहे उससे की ऐ सपने सजाने वाली,
तेरा सपना टूट गया,
एक मां का आंचल बचाने के लिए,
एक सुहाग लुट गया !
कौन समझाए कि, 72 चाहने वाले,
देश के, विश्व के, मानवत्व के दुश्मन हैं,
पर सौभाग्यवान हैं वे, जिनका तिरंगा होता कफन है,
अरे दुल्हन, तेरा दूल्हा जाते जाते इतिहास गढ़ गया,
रिपु के मस्तक भाल पर पराजय मढ़ गया !
चीखों में उतरेगा अब मंगलसूत्र,
अश्रुओं में बह जाएगा काजल भी !
हे पाठक, बता तनिक यह कि क्या उन अमृतांशुओं का मोल,
चुका सकता है गंगाजल भी ???
जिसके अधरों पर लालिमा है उस होने वाले चुम्बन की,
जिसके नयन व्रीड से शुष्क हैं !
वो परिमल, वो सौंदर्य, वो लाली, वो लहंगा, वो चांद जो चढ़ा हुआ गिगनारों में,
वो जो महकता उसके इत्र में, नयनों के कज्जल में, साज - श्रृंगारों में,
जिसकी प्रतिमा स्थापित है हृदय में मन में,
क्या वो सदा साथ देगा उसका जीवन में ?
क्या प्रियतम के लिए वह नित सिंदूर सजा पाएगी,
क्या वो सदा चूड़ियां पहनेगी, काजल लगाएगी ?
क्या वो सीमा पर खड़ा हुआ भी,
उसे याद रखता होगा ?
क्या उसे भी स्व में कुछ कम, कुछ अपूर्ण लगता होगा ?
क्या उसे मन में न आएगा उस अजन्मी नन्ही जान को बाहों में भरना,
क्या उसे याद न आएगा उसका रोना, लाते मारना, कुलांचे भरना ?
वह इन्ही विचारों में थी मग्न, भूतार्थ से कुछ बहुत दूर,
ऐसे में ही दर्पण के सामने से धरा पर गिरा उसका सिंदूर,
इस अपशकुन से वह नववधू हुई कुछ भीत, कुछ अधीर,
इतने में आंगन में आया एक तिरंगे से ढका शरीर,
पुष्प मुरझाए, हवाएं निश्चल हो मौन है,
इस वितान के नीचे यह लेता हुआ कौन है ?
कौन कहे उससे की ऐ सपने सजाने वाली,
तेरा सपना टूट गया,
एक मां का आंचल बचाने के लिए,
एक सुहाग लुट गया !
कौन समझाए कि, 72 चाहने वाले,
देश के, विश्व के, मानवत्व के दुश्मन हैं,
पर सौभाग्यवान हैं वे, जिनका तिरंगा होता कफन है,
अरे दुल्हन, तेरा दूल्हा जाते जाते इतिहास गढ़ गया,
रिपु के मस्तक भाल पर पराजय मढ़ गया !
चीखों में उतरेगा अब मंगलसूत्र,
अश्रुओं में बह जाएगा काजल भी !
हे पाठक, बता तनिक यह कि क्या उन अमृतांशुओं का मोल,
चुका सकता है गंगाजल भी ???
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