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"अजनबी महबूबा"
हम तुझे जानते न थे पहले
तुझको पहचानते न थे पहले
आज तुझको जो जान पाए हैं
मेरे अशआर जगमगाए हैं
तू कोई आन बान वाली है
तू हसीनों में शान वाली है
तू समंदर सा गहरा पानी है
तेरे होने से सब कहानी है
तू मिला है मुझे मनाने से
आज मैं ख़ुश हूॅं तेरे आने से
तुझको मैं रास्ता अगर कह दूॅं
तुझको जीने का गर हुनर कह दूॅं
तुझको अपनी मता-ए-जाॅं कह दूॅं
तुझको अपना मैं हमनवा कह दूॅं
मेरा तुझसे ही राब्ता है अब
सदियों सदियों का वास्ता है अब
दूर मैं तुझसे अब किधर जाऊॅं
तुझको मैं देख कर सॅंवर जाऊॅं
मुझको साया भी तेरा भाता है
रात दिन तू ही याद आता है
तेरे होने से मयस्सर है सुकूॅं
बिन तेरे मैं तो कहीं भी न रहूॅं
हो के अनजान अब नहीं जीना
बिन तेरे जान अब नहीं जीना
तुम पे सबकुछ मैं आज हारा हूॅं
तुम मेरे और मैं तुम्हारा हूॅं
Hameed Sarwar Bahraichi
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