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मैंने नहीं लिखी कभी
कोई दुख भरी कविता
मां के लिए ।
मैंने कभी नहीं देखा था उसे
फूंकते हुए चूल्हे में अपना जीवन ।
न ही देखा था
ढोते हुए पानी के साथ
जीवन का बोझ ।
पर मैंने देखा था उसे
संवारते हुए
कच्चे आंगन और कच्चे मन ।
मैंने देखा था
बारिश में वो कैसे
टपकते घर का सारा पानी
करती
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