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मान लो कि मैं कहीं खो जाऊं
और तुम मुझे ढूंढो
तो मैं चाहूंगी
कि तुम ढूंढना मुझे
मेरी किसी अधूरी कविता में
मैं मिलूंगी तुम्हे अटकी हुई
किसी शब्द में
जो मैं लिख नहीं पाई ।।
या फिर
तुम मुझे ढूंढते हुए जाना
मेरी किताबों की अलमारी के पास
और पढ़ना मेरी किताबें
मैं उनमें मिलूंगी तुम्हे
नहीं,
किसी सूखे हुए फूल की तरह नहीं
बल्कि मैं मिलूंगी
उन पंक्तियों में
जो गुज़री हैं मेरे मन से होकर
और खिंच गई हैं
मेरे मस्तिष्क में एक
अमिट रेखा की तरह।।
~गुंजन
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