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जब उम्र के पड़ाव
गुज़रते जाएंगे
मील के पत्थरों की तरह
तेज़ रफ्तार से भाग रहे
इस जीवन में ।
और घड़ी की
रूकी हुई सुइयों में
जबरन रोके जाने के बावजूद
आ पहुंचेगा
घर की चौखट पर
दस्तक देने वो समय...
जब आंखें देख सकेंगी
बस मन के भीतर ।
और आंखों पर चढ़े चश्मे भी
शायद तब न देखना चाहेंगे
बाहर की आभासी
दुनिया की चहल पहल ।
जब आवाज़ें भी
गुज़र जाएंगी धुएं की तरह
कानों के पास से
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