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उसे पसंद था बातें करना

उनसे

जो नहीं रखते हैं 

क़ैद अपने हृदय को

पसलियों के भीतर

जो, जब बोलते हैं

तो उनका हृदय 

होता है उनकी जिह्वा पर

और जब सुनते हैं 

वो तुम्हारी बातें

तो कान ले लेते हैं

रूप उनके हृदय का ।


इसलिए 

जब कोई न होता
 
आस पास सुनने के लिए

वो आवाज़ देती थी

ईश्वर को 

और करती थी उनसे

बतकही अनकही ।।



मुझे भी पसंद था बातें करना

उनसे<

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