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प्रिय डायरी,
पता नहीं तुम्हें पता है
कि नहीं
कि तुम मेरी सबसे पहली
सबसे अच्छी दोस्त थीं ।
तुम्हारे पन्नों में मौजूद है
मेरी हर उड़ान से पहले की बेचैनी
और हार के बाद के दर्द भी
तुम्हारे कुछ पन्ने
शायद अब भी
सीले से होंगे
और उनके हर्फ कुछ मिटे
अपने आप में सिमटे से होंगे
मेरी तरह ।।
पता नहीं तुम्हें
पता है कि नहीं
कि सिर्फ तुमने ही देखा था
लोगों के हुजूम में
सकुचाया सा खड़ा
मेरा अकेलापन ।
सिर्फ तुम ही थीं
जो शोर में भी
पहचान लेती थी
मेरी ख़ामोशी ।
मुझे अच्छे नहीं लगे
कभी भी आईने
मेरा आईना तुम थी
जिसमें मैं हुबहू
मेरे जैसी ही दिखी
हमेशा ।।
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