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पथराने लगी हैं


मेरी प्रतीक्षारत आंखें



जो ताकती रहती हैं


बंद दरवाज़ो को



जो उदास हैं


इस शाम की तरह



जो ढल रही है


एक सूरज को लेकर



जो अकेला


आसमान में जल रहा था

एक बादल की तलाश में



जो बरस जाता

इस प्यासी धरती पर



जो प्रतीक्षारत है


भीग जाने के लिए


मेरी तरह



जो खोलना चाहती है

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