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ईश्वर ने जब सृष्टि को रचा
किसी भी चीज़ को
रंग से ख़ाली न रखा
छोड़ दिया बस पानी
बेरंग बेस्वाद ।।
इस ज़्यादती पर
बहुत रोया पानी ।।
उसके आंसुओं में
भी स्वाद था
नमक का ।।
उसकी ईश्वर से नाराज़गी
जायज़ थी ।।
पानी घुल रहा था अपनी उदासियों में
और उदासियां घुल रही थीं
सृष्टि में ।।
ईश्वर बोले
तुम भले बेरंग बेस्वाद हो
पर अकल्पित रहेगा
जीवन तुम्हारे बिना ।।
तुम हर रंग में ढल जाओगे
हर तिश्नगी बुझाओगे ।।
सृष्टि बननी थी, बनी
मैं बनी
तुम बने
फिर हम मिले ।।
मुझे तुम भी
पानी जैसे ही लगे ।।
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