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झांकते नहीं वो अपने गिरेबां में आजकल
आईने अब उनको खुद से मिलाने आए हैं
वाक़िफ थे हम ज़िंदगी की हक़ीक़त से दोस्तों
क्यों सुनाने वो हमें ज़िंदगी के फसाने आए हैं
जाते हैं बाज़ार वो खुशियों को खरीदने
खुश रहने के भी अब कैसे कैसे बहाने आए हैं
म
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