
Share0 Bookmarks 143 Reads0 Likes
धूप के गहरे साए भटकते रहे दर ब दर
वो मेरे साथ अंधेरों में भी चले आए ।
मैंने सोचा दरख्तों से टपकती ओस पी जाऊं
ये बहते हुए दरिया मेरी प्यास बुझा नहीं पाए ।।
फूलों सा महकना मुझे आया ही नहीं
बस कांटे ही कांटे मेरे पैरों को भाए ।
उड़ना था मुझे पंख पसार परिंदों की तरह
आसमानों को रास मेरे पंख नहीं आए ।।
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments