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उसकी खिड़की से जो आसमान दिखता था
उसमे कभी नहीं निकलता था
पूर्णिमा का चांद ।
उस आसमान में दिखता था
अमावस का चांद
जो होते हुए भी
नहीं होता है ।
वो भी तो अमावस के चांद जैसा ही था
था भी और नहीं भी
होता था पर किसी को दिखता नहीं ।
अमावस की रात को जब
भूख लगती थी
वो मुंह खोल कर
खा लेती थी तारों को ।
उसे जब भूख लगती थी
वो कुछ नहीं खा पाता था
भूख ही मुंह खोल कर
खा लेती थी उसे ।।
~गुंजन
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