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सुन सखी!
सुबह और शामें
आस्था से भरी बेला हैं
और दोपहरें सदा से ही
खाली और निर्लेप
ईश्वर के सोने का समय है दोपहर
हलाँकि
मैंने देखा है
ईश्वर को
दोपहर में मंदिर के कपाटों के बाहर
हथौडे़ /गँड़ासे /तसले उठाए
नंगे बदन खड़ा है ईश्वर
जलते तलवों तले सृष्टि दबाए
ईश्वर के पसीने से भीजी माटी
और ख़ुद फसलों में लहलहाता <
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