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          मुनीरी समाज की कहानी

  ( चाचा - भतीजा )       दिनांक २०/१०/२०२२

         
जिला बुलंदशहर , सिकंदराबाद जी टी रोड से गुड्डू मुनीरी ( सिकंदराबादी ) और उसका फुफेरा भाई निजाम मुनीरी पैदल पैदल घर लौट रहें थे दोपहर का वक्त था  न स्कूल, न ट्यूशन, न पढ़ाई बस खेलना एवम घर  के कार्य व चने - मूंगफली की दुकान के कामों में हाथ बटाना आदि था
   गुड्डू के चाचा ( अल्लादिया यानी ए डी खान ), अब्बा ( अब्दुल अजीज उर्फ बूचा ) और दादा ( अब्दुल रहमान ) साहब का दुकान संभालने के साथ साथ भाड़ पर चने - मूंगफली - मक्का - खील आदि भूनने व बेचने का काम था
       समाज में काफी प्यार, मुहब्बत व मेलजोल के साथ यह मुस्लिम भड़बूजा जाति के लोग रहते थे जिन्हे आज हम मुनीरी समाज के नाम से जानते है ।
       गुड्डू और निजाम दोनो जब जी टी रोड से घर लौट रहे थे कि घर पहुंचने से पहले ही निजाम के मामा और गुड्डू के चाचा यानी ( ए डी खान मुनीरी ) जी ने  उन्हें इशारा दिया और उन्हें घर से बीस कदम दूर दुकान के पास रोक लिया और कहा - इधर आओ और जरा जेब दिखाओ  दोनो ही डरे हुए बोले - जी चाचा- जी मामा ।
जब तक गुड्डू और निजाम पीछे होते तब तक उनकी जेब में ए. डी. जी का हाथ जा चुका था और उन जेबों से माचिस के बहुत से खाली खोल निकल आए । वह समझ गए थे कि आज इनके पास कोई काम नहीं है सिवाए इधर उधर भटकने के, यही वही माचिस के खोल होते थे जो लोग बीड़ी  माचिस की तिल्ली से जलाकर माचिस खाली होने पर इधर उधर रोड पर फेंक दिया करते थे और उनको गुड्डू और निजाम दोनो ही माचिस खोल फाड़कर कर उनके। ताश जैसे पत्ते बनाकर मेल जोल का खेल खेला करते है बच्चों में अक्सर यह होता है  वह अक्सर हर चीज में खेल और खुशी को तलाश करते है लेकिन दूसरे कारण एक यह भी था कि कुछ लोग ताश के पत्ते के बजाए वह इन माचिस के पत्तो का इस्तेमाल जुआ खेलने में किया करते थे ।
    इसी लत के डर से चाचा ने  गुड्डू और निजाम दोनो को लताड़ लगाई और माचिस खोल छीनकर कर कामधेनु सरिया वाली गली से घर की ओर रवाना किया यह कठोर रूप बच्चों के लिए गलत संगत से रोक और शिक्षित करने का प्रयास था जो सफल भी रहा ।
      दूसरी ओर यह दोनो बालक लगभग एक सात वर्ष तो दूसरा आठ वर्ष, की आयु से ऊपर हो चुके थे निजाम का तुतलाना काफी भाता था हंसी मजाक और व्यवहार में हमेशा आगे था तो गुड्डू भी

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