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सब तरफ वीराना है
फैली हुई है तन्हाई,
गुलशन भी घबरा के बोला,
पतझड़ कहाँ से चली आई।
कोहरे की चादर है
आसपास भी नही कोई,
हम दोनों के कदमों से
सूखे पत्ते चिपके है।
©गोपाल भोजक
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सब तरफ वीराना है
फैली हुई है तन्हाई,
गुलशन भी घबरा के बोला,
पतझड़ कहाँ से चली आई।
कोहरे की चादर है
आसपास भी नही कोई,
हम दोनों के कदमों से
सूखे पत्ते चिपके है।
©गोपाल भोजक
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