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बीत गये उम्र के बसंत,
अब वीराने से क्या लोगे।
ढल रहा उम्र का सूरज,
अब रोशनी का क्या लोगे।
कुछ दर्द हमे ऐसे भी मिले,
जो जलेगें नहीं चिताओ में।
उम्र भर जिसको पा न सके,
इस मरघट में अब क्या लोगे।
©गोपाल भोजक
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