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कभी वह वक्त भी आता है,
सब कुछ छोड़ने को दिल चाहता है
आंखें उजियारे पलों को देखने को तरसती है
पर अंधकार में लिप्त जीवन बेबस-सी दिखाई पड़ती है
कर्म-फल का तेजस्वी स्वरूप तब रेखांकित होता है,
जब अहं कुकर्म का सारथी बन विनाश द्वार ले आता है
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