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वह एक लाख और वह चार करोड़
तालिबान का हमला कोई नई बात नहीं है। अक्सर हम लोग अख़बार और टीवी पर पड़ते व सुनते है कि इस देश पर हमला उस देश पर कब्जा इत्यादि। तालिबान अरबी भाषा का शब्द है जो तलब से बना है। तलब का अर्थ होता है किसी चीज को हासिल करने की इच्छा। 90 के दशक में जब अफगानिस्तान लड़ाई का दंश झेल रहा था, तब ये तालिबान का जन्म हुआ। तालिबान लंबे समय से अफगानिस्तान में लड़ाई लड़ रहा है। इससे जुड़े लोगों ने पहले सोवियत संघ के खिलाफ लड़ाई लड़ी और उसके बाद एक संगठन के रूप में अमेरिका से व अन्य देशों से भी । तालिबान ने एक बार पहले भी अफगानिस्तान में तख्तापलट किया और अब वो फिर वहाँ राज कर रहा है। वहाँ डर, लाचारी, खौफ और खून का खेल चल रहा है।सभी लोग किसी भी तरह अफगानिस्तान छोड़ना चाहते हैं। वहाँ की सरकार और फौज पहले ही हाथ खड़ी कर चुकी है। ऐसे में अन्य देशों ने अपने नागरिकों को निकलना शुरू कर दिया है। परंतु क्या किसी ने सोचा है कि अफ़ग़ानियों का क्या होगा ? उनका क्या दोष है ? यह सत्य है कि अमेरिका ने उनकी 20 साल मदद की है परंतु उसमें उसका स्वयं का स्वार्य था। अब अमेरिका ने भी अपनी सेना हटा दी है। क्या एकदम से सेना हटाकर उन्हें संभलने तक का वक़्त न देना कैसे सही है। बच्चा जब चलना शुरू करता है और थोड़े समय के बाद चलने लगता है फिर भी माता-पिता आस-पास रहते हैं कि क्या पता डगमगा जाए। देशभक्ति का न हो
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