महिला सशक्तिकरण
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किसी व्यक्ति, समुदाय या संगठन की आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक, शैक्षिक, लैंगिक, या आध्यात्मिक शक्ति में सुधार को सशक्तिकरण कहा जाता है। महिला सशक्तिकरण मुख्य रूप से महिलाओं को स्वतंत्र बनाने की प्रथा को संदर्भित करता है ताकि वे स्वयं निर्णय ले सकें और साथ ही बिना किसी पारिवारिक या सामाजिक प्रतिबंध के अपने जीवन को संभाल सकें।यह एक बेहद पेचीदा और संवेदनशील मामला है। यह मुद्दा एक राजनैतिक विषय बन गया है। अतीत के पन्नों को यदि पलटा जाए तो हमें ज्ञात हो गा की स्त्रियों को कई प्रकार के अधिकार प्राप्त थे। पतंजलि और कात्यायन जैसे प्राचीन भारतीय व्याकरणविदों का कहना है कि वैदिक काल में महिलाओं को शिक्षा दी जाती थी।ऋग्वैदिक ऋचाएँ यह बताती हैं कि महिलाओं की शादी एक परिपक्व उम्र में होती थी।ऋग्वेद और उपनिपद जैसे ग्रंथ कई महिला साध्वियों और संतों के बारे में बताते हैं जिनमें गार्गी और मैत्रेयी के नाम उल्लेखनीय हैं। अध्ययनों के अनुसार वैदिक काल में महिलाओं को बराबरी का दर्ज़ा और अधिकार मिलता था।
रज़िया सुल्तान दिल्ली पर शासन करने वाली एकमात्र महिला सम्राज्ञी बनीं। गोंड की महारानी दुर्गावती ने 1564 में मुगल सम्राट अकबर के सेनापति आसफ खान से लड़कर अपनी जान गँवाने से पहले पंद्रह वर्षों तक शासन किया था। चाँद बीबी ने 1590 के दशक में अकबर की शक्तिशाली मुगल सेना के खिलाफ अहमदनगर की रक्षा की। जहाँगीर की पत्नी नूरजहाँ ने राजशाही शक्ति का प्रभावशाली ढंग से इस्तेमाल किया और मुगल राजगद्दी की वास्तविक शक्ति के रूप में पहचान हासिल की। मराठा योद्धा शिवाजी की माँ जीजाबाई को एक योद्धा और एक प्रशासक के रूप में उनकी क्षमता के कारण सम्मान दिया जाता है। दक्षिण भारत में कई महिलाओं ने गाँवों शहरों और जिलों पर शासन किया तथा सामाजिक एवं धार्मिक
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