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हिंदी का सम्मान है हमारा स्वाभिमान
भाषा वह साधन है जिसके द्वारा हम अपने विचारों को लिखकर ,बोलकर व सुनकर व्यक्त कर सकते हैं। यदि भाषा नहीं होगी तो हम अपनी भावनायें व्यक्त नहीं कर पायेंगे। मातृभाषा एक ऐसी भाषा है जो हम जन्म से बोलते हैं व अपने परिवार में सुनते आ रहे हैं।भारत में कुल 121 भाषायें और 270 मातृभाषा हैं। हमारी मातृभाषा हिंदी है ।विश्व में सबसे ज्यादा बोली जाने यह वाली तीसरी भाषा है। यह संस्कृत की वंशज है।14 सितंबर 1949 को, भारत की संविधान सभा ने अनुच्छेद 343,के द्वारा देवनागरी लिपि में लिखी गई हिंदी को भारत की आधिकारिक भाषा के रूप में स्वीकार किया था।इसी कारण हम 14 सितंबर के दिन को 'हिन्दी दिवस' के रूप में मनाते हैं। यह निर्णय भारत के संविधान द्वारा स्वीकृत किया गया था और 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ।अधिकतर लोगों ने हिंदी को राष्ट्रभाषा भाषा मान लिया ।हिंदी भारत में वार्तालाप के मुख्य साधनों में से एक है। हिंदी एक भाषा ही नहीं है बल्कि भारत देश की संस्कृति, संस्कारों व उसके गौरव का प्रतिबिंब है। हिंदी का समृद्ध इतिहास है। महान कथाकारों व हिंदी के सम्राटों ने इसे अपनी कलम से रोपा है।जय शंकर प्रसाद,रामधारी सिंह दिनकर या प्रेमचंद हो सबने हिंदी को महकाया है। आज़ादी की लड़ाई में हिंदी का सबसे बड़ा योगदान रहा है । साहित्यकारों ने आज़ादी के आंदोलन में अंग्रेज़ों की आलोचना करते होए हिंदी में काफी लेख लिखे। सामाजिक कुरीतियों व सामजिक विषयों में सुधार करने में भी हिंदी का बहुत बड़ा योगदान रहा है। उपन्यास सम्राट प्रेमचंद ने अपनी कहानियों में नारी के खिलाफ हो रहे अपराधों के बारे में लिखा है। उन्होंने नारी का विश्लेषण करते होए उसे महान भी बताया है। वहीं जय शंकर प्रसाद ने गरीबी व भुखमरी के ऊपर लिखा है। सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला ने अपनी रचना 'वह
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