
Share0 Bookmarks 49 Reads0 Likes
हँस खेल रही है प्रकृति देखो
सुंदर बहुरंगी आँचल ओढ़े
घूँघट के पट खोलता सूरज
है धरती से अपना नाता जोड़े
पैरों में पहन वसंती पायल
हवा फिर रही है अलकें छोड़े
इठलाकर बलखा रहीं लताएँ
झूम रही हैं जैसे हों नशे में थोड़े
भौंरे नाच रहे हैं फूल- फूल पर
जैसे रमता जोगी बन मोह तोड़े
छाई है खुमारी साँझ के मन पर
गुम सी है सुख दुःख से मुँह मोड़े
खुश हो मना रही हैं जश्न फ़िजाएँ
खिजाँ भागी खाकर ठंड के कोड़े
गीता टण्डन
16.02.22
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments