बसंती बहार's image
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हँस खेल रही है प्रकृति देखो

सुंदर बहुरंगी आँचल ओढ़े

घूँघट के पट खोलता सूरज

है धरती से अपना नाता जोड़े

पैरों में पहन वसंती पायल

हवा फिर रही है अलकें छोड़े

इठलाकर बलखा रहीं लताएँ

झूम रही हैं जैसे हों नशे में थोड़े

भौंरे नाच रहे हैं फूल- फूल पर 

जैसे रमता जोगी बन मोह तोड़े

छाई है खुमारी साँझ के मन पर

गुम सी है सुख दुःख से मुँह मोड़े

खुश हो मना रही हैं जश्न फ़िजाएँ 

खिजाँ भागी खाकर ठंड के कोड़े


गीता टण्डन

16.02.22

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