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अमलतास फिर हरषाया
तमतमाए सूरज को देख
अमलतास बन धीर गंभीर
निश्छल निर्मल मन से देखो
है अमलतास फिर मुस्काया
तृषित धरा के आँगन में
तपते हृदय को तृप्ति देने
सूखे कंठों को सहलाने को
है अमलतास फिर गदराया
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