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इशारा
एक रात तेरे जुल्फों में
गुजर रही है धीरे धीरे
कोई आहट सुनाई दे
रही हैं धीरे धीरे
तू इशारा दे रही हैं मुझे मगर
मैं समझ रहा हूं धीरे धीरे
सिसकियां भरते हुए तू
तरंगे जगा रही है मेरे दिल में
चुप तू भी है चुप मै भी हूं
ये रात इजहार कर,
रही हैं धीरे धीरे
-ग़ज़ल सागर
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