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जब मैं लेट गई अपने गर्म बिस्तरपर
सिर रख दिया अपने नर्म तकिये पर
लिपट गया वो मुझसे रखके हाथ मेरे कंधेपर
प्यारकी हल्की सी चादर ओढ़े मैं नींदमें खो गयी
तब एहसास हुआ सकून-ए-जिस्तका
एहसास हुआ प्यार और विश्वास का
एहसास हुआ नजारा-ए-जन्नत का
और खुदा के होनेकी तसल्ली हो गयी
हो ऐसा घर जहां सकून-ए-दिल-ओ-दिमाग हो
हो ऐसा साथी जो साथ और प्यार देनेवाला हो
ना रहे किसी और चीज की तमन्नाही
जान लो की वो जन्नत मिल गयी
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